जउनी माटी का माथे दै, रन माँ जूझें नेता सुभास।
जउनी माटी कै चरन छुवै का, नइना चारिउ मूँ अकास।।
जउनी माटी माँ जलम पाइ, भे धन्न माघ भवभूति भास।
जउनी माटी का ना पायेन तौ भै देवी देउतौ उदास।।
ई माटी बीर भगत सिंह कै, ई माटी दास कबीरा कै।
रसखान, बिहारी, राजगुरू, ई माटी नानक मीरा कै।।
ई माटी आल्हा ऊदल कै, औ बीर सिवा रनधीरा कै।
ईसा, मूसा, गाँधी, गौतम, ई माटी आलमगीरा कै।।
ई उहै देस जहँ मुरलीधर, मुरली कै तान सुनाइ गये।
जहाँ दसरथ की अँगनाई माँ, राघव पैंजनी बजाइ गये।।
जेहकै सपूत एक पवनपूत, रावन घर आग लगाइ गये।
पुरखै जिउ दइके भये धन्न, माटी कै करज चुकाइ गये।।
पुरखन के लोहू से सींची, बगिया कै हम रखवार अही।
आपुस माँ हम सब एक, मुला दुस्मन की खातिर चार अही।।
भारत की रच्छा की खातिर, असफाक, भगत, सरदार अही।।
बैरी कै सीना देय फार, हम ऊ तेगा तलवार अही।।
भारत के बीर जवानौ तोंहका, कसम देस की माटी कै।
एकरे कन कन माँ जोस भरा, बा हलदी वाली घाटी कै।।
सुधि करा बहादुर बीर सिवा, औ राना की परिपाटी कै।
छन भंगुर ई जीवन तोहार, जिन गरब करा यहि टाटी कै।।
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